New Delhi: उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने सोमवार को जोर देकर कहा कि लोकतंत्र के मंदिरों में व्यवधान और अशांति को राजनीतिक रणनीति के हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए और उन्होंने विधायकों तथा पीठासीन अधिकारियों से तत्काल इस दुर्भावना को दूर करने की अपील की।
उपराष्ट्रपति ने आज तिरुवनंतपुरम में केरल विधानसभा के भवन – नियमसभा – के रजत जयंती समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों को अनिवार्य रूप से शुद्धता, शिष्टता और मर्यादा के उच्च मानकों द्वारा अपने आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
श्री धनखड़ ने विधायकों से संविधान सभा से प्रेरणा ग्रहण करने की अपील की जिसने कई जटिल मुद्दों को बिना किसी व्यवधान के निपटाया और रेखांकित किया कि विधायिका का प्रभावकारी कामकाज लोकतांत्रित मूल्यों के फलने-फूलने एवं संरक्षित करने तथा कार्यपालिका को जवाबदेह बनाने की सबसे सुरक्षित गारंटी है। उन्होंने ‘‘दूसरे की विचारधारा के प्रति असहिष्णुता की चिंताजनक प्रवृत्ति को खत्म करने” की भी अपील की।
इस बात पर जोर देते हुए कि किसी लोकतंत्र में सभी मुद्दों का मूल्यांकन पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण के साथ नहीं किया जा सकता, उपराष्ट्रपति ने सभी से राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देते हुए पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से ऊपर उठाने की अपील की। उन्होंने यह प्रश्न भी उठाया कि ‘‘वह हाजिरजवाबी, हास्य और कटाक्ष जो पहले संसद और विधानमंडलों की विख्यात हस्तियों के बीच आदान प्रदान की विशिष्टता रही”, अब सार्वजनिक बहस से क्यों लुप्त हो रही है और उन्होंने विधायकों से इसे पुनर्जीवित करने की भी अपील की।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि संविधान सदन के परिसर के भीतर बोलने की स्वतंत्रता का विशेषाधिकार प्रदान करता है, बहरहाल, उन्होंने सावधान किया कि इस स्वतंत्रता का उपयोग एक जीवंत लोकतांत्रिक परंपरा को बनाये रखने के लिए एक स्वस्थ बहस के लिए किया जाना चाहिए न कि विघटनकारी उद्देश्यों के लिए। उन्होंने रेखांकित किया कि संसद और विधानमंडल असत्यापित सूचनाओं के तेज और निरंतर पतनशील अभिव्यक्तियों के मंच नहीं हैं।
इस बात पर जोर देते हुए कि किसी भी लोकतंत्र में, संसदीय संप्रभुता अनुल्लंघनीय है, उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘लोकतंत्र का सार वैध मंच-संसद और विधानसभाओं के माध्यम से अभिव्यक्त लोगों के कानून की व्याप्ति में निहित है।”